मुजफ्फरनगर.10 अक्टूबर. 2019। आज का समय यह है कि कोई किसान अपने बच्चो को किसान नही बनाना चाहता है तथा ना ही कोई नौजवान खेती करना चाहता है क्योंकि आज की खेती घाटे का सौदा हो चुकी हैं। इस बात से हम अंदाजा लगा सकते हैं कि अगर किसानों ने खेती करना छोड दिया तो आने वाले समय में हम दाने.दाने को मोहताज हो सकते हैं। अपनी खोई हुई विरासत को सम्भालने का व अपने पूर्वजो व क्रांतिकारयो के स्वदेशी प्राकर्तिक कृषि के सपने को साकार करने के लिये तितावी के ड़ा अश्विनी कुमार अब युवाओ के बीच बेरोजगारी के दौर मे कुदरती खेती से रोजगार की अलख जगा रहे है।
आजकल इसी मुहिम को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ गावँ तितावी के रहने वाले ड़ा अश्विनी कुमार आर्ट ऑफ लिविंग के प्राकर्तिक खेती अभियान व अमृतधरा किसान समूह के अन्तर्गत अपने तीन दिवसीय कार्यशालाओं के माध्यम से किसानों व नवयुवकों को कुदरती खेती के गुर सिखा रहे हैं।
ड़ा अश्विनी कुमार ने बताया कि वैसे तो भारत भूमि सोने की चिड़िया कही जाती रही है। यह कहना भी अतश्योक्ति नहीं होगी कि भारत देश की स्वतंत्रता में सबसे अधिक योगदान यहाँ के किसानों ने दिया था। आज भी अपने देश में कृषि 60ः लोगो को रोजगार प्रदान कर रही है क्योंकि सदियों से यह एक कृषि प्रधान भूमि रही है। परंतु जब से हमने रासायनिक तत्वों का उपयोग शुरू किया है हम लगातार अपनी भूमि अपनी संस्कृति और अपना वैभव खों रहे है। तथा इन जहरीले रासायनिक खाद व कीटनाशकों के कारण हम लोग किडनी व हार्ट फैल कैंसर व नीयोरोलोजिक डिसॉर्डर जैसी भयंकर बीमारियों के कारण मौत के मुहँ में समा रहे हैं। तथा ये जहरीले रसायन हजारो सालो तक पर्यावरण में रहते हैं जिस कारण हमारी पीढियों को भी बीमार व लाचार करने की तैयारी हो रही हैं।
वे बताते हैं कि अगर किसानों के पास एक भारतीय नस्ल की देशी गाय हैं तो वे लगभग 100 बीघा खेती बिना रासायनिक खाद व कीटनाशकों के जहर मुक्त विधि से कर सकते हैं।
जिसके अन्तर्गत प्राकृतिक जैविक प्रक्रिया से भूमि उपचार करना वैदिक कृषि पद्धति से जैविक खाद का स्वयं निर्माण जैविक एन्जाइम बनाना कीटो की प्रकृति का ज्ञान एवं जैविक कीटनाशक से उपचार देसी बीजों की उत्पादन संरक्षण एवं उपचार प्रक्रिया अग्निहोत्र विधि से भूमि और फसल में सकारात्मक उर्जा के संचारण का पूर्ण प्रशिक्षण दिया गया
ड़ा अश्विनी कुमार अपने खेती बचाओ जीवन बचाओ कार्यषाला षिविरो मे गंाव के युवाओ को बताते है कि इसके अलावा गौ विश्व की माता . क्यों प्राकृतिक जैव विविधता का संचारण कृषि रोपण कैलेंडर बनाना कृषि पर आधारित ग्रामीण लघु उद्योगों और बाजार का अध्ययन जैविक उत्पादों की प्रमाणीकरण विधि प्रायोगिक कार्यशालाओं का आयोजन व जैविक खेत का निरीक्षण भी इस शिविर का मुख्य अंग रहा है।
तितावी गंाव के इस शिविर में दुसरे प्राकर्तिक शिक्षक ब्रिजेश त्यागी जी रहे जो पिछ्ले 15 सालों से प्राकर्तिक बागवानी कर रहे हैं तथा इस शिविर को सफल बनाने में इन्द्रजीत सिंह जाखड , आर्ट आफ लिंविग के कोडिनेटर संजीव जलोत्ररा, विकास बालियान आशीष लाटियान, नितिज्ञ आर्य ने सहयोग दिया।